उत्तर-दक्षिण विभाजनकी झूठी कहानी

हाल ही में लंदन से प्रकाशित ‘द इकोनमिस्ट’ नाम की एक पत्रिका ने एक बेहद शरारती लेख के जरिये उत्तर और दक्षिण के बीच विभाजन की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश की है। पत्रिका यह दावा करने की कोशिश करती है कि दक्षिण भारतीय राज्य आर्थिक दृष्टि से शेष भारत से अलग हैं। यह सच है कि भारत में अलग-अलग क्षेत्रों पर अलग-अलग समय में अलग-अलग शासकों का शासन था। लेकिन पूरे भारत में रहने वाले सभी लोगों के बीच एक अटूट संबंध बना रहा

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चूंकि भारत की केवल 20 प्रतिशत आबादी पांच दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में रहती है, लेकिन इन राज्यों को कुल विदेशी निवेश का 35 प्रतिशत प्राप्त होता है। इन राज्यों ने देश के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक विकास किया है। वर्ष 1993 में ये राज्य देश की जीडीपी का 24 प्रतिशत उत्पन्न करते थे, वहीं अब यह बढ़कर 31 प्रतिशत हो गया है। 46 प्रतिशत टेक यूनिकार्न दक्षिण भारत से हैं और भारत का 46 प्रतिशत इलेक्ट्रानिक्स निर्यात इन्हीं पांच दक्षिणी राज्यों से होता है।

सारा विश्व जनता है कि उत्तर से दक्षिण तक, पूर्व से पश्चिम तक भारत एक है। इस उपमहाद्वीप में रहने वाले सभी लोग विविध धर्मों, जातियों, भाषाओं, क्षेत्रों, वेशभूषा और खान-पान के बावजूद स्वयं को भारतीय मानते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित हमारे ज्योतिर्लिंग, तीर्थ और धाम इस बात के गवाह हैं कि सभी भारतीय पूरे राष्ट्र को अपना राष्ट्र मानते रहे हैं और भाषाई, क्षेत्रीय, खान-पान और अन्य विविधताएं कभी भी इसमें बाधक नहीं बनीं।

लेकिन अफसोस की बात है कि विदेशी शासन के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा ऐसा साहित्य रचा गया और जानबूझकर इतिहास लेखन के माध्यम से झूठी कहानियां गढ़ी गईं, जिससे दक्षिण भारत के लोगों के मन में उत्तर भारत के लोगों के खिलाफ जहर भर गया। झूठा इतिहास रचा गया कि आर्य विदेशों से आए थे और उनके क्रूर आक्रमण से द्रविड़ लोग आहत होकर दक्षिण की ओर जाने को मजबूर हुए। ऐसी स्थिति में हिंदी भाषा के प्रति शत्रुता को दक्षिणी राज्यों में तीव्रता से बढ़ावा दिया गया। कहा जाता है कि इस झूठी कहानी की शुरुआत एक जर्मन प्राच्यविद् और भाषाशास्त्री ने की थी। आज प्रचुर मात्रा में वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं जो साबित करते हैं कि आर्य आक्रमण सिद्धांत पूरी तरह से एक मिथक, मनगढ़ंत और काल्पनिक है और अवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। भारत, अमेरिका और अन्य देशों के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में प्रकाशित शोध पत्रों के अनुसार, हड़प्पा काल के वैज्ञानिक तथ्यों के साक्ष्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मध्य एशिया से आर्यों का इतने बड़े पैमाने पर प्रवास कभी नहीं हुआ। इसके अलावा कई इतिहासकारों ने भी इस झूठी कहानी को उजागर करने का काम किया है।

इसी तरह दक्षिण भारत के कुछ नेता भी इसी प्रकार के तर्क देकर अपनी अलगाववादी राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं। हम जानते हैं कि देश में कुछ भ्रष्ट और अयोग्य नेताओं के कारण कई राज्यों का विकास बाधित हुआ, जिनमें दक्षिणी राज्य भी शामिल थे। पूर्वोत्तर के कई राज्य पूर्ववर्ती केंद्र सरकार की उपेक्षा के शिकार रहे हैं। लेकिन जम्मू-कश्मीर जैसे कई राज्यों को उनकी जनसंख्या के अनुपात से कहीं अधिक संसाधन मिलते रहे। हमें यह भी समझना होगा कि हमारे सभी राज्यों का विकास एक-दूसरे के सहयोग से ही हो सकता है। जहां तक विकास का सवाल है, देश में सबसे ज्यादा प्रति व्यक्ति आय वाले दस राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल दो दक्षिण से हैं और वह भी पांचवें और छठे स्थान पर हैं, और वह भी आईटी सेक्टर के कारण, जहां भारत के सभी हिस्सों से आने वाले लोग काम कर रहे हैं।

जहां हमारे देश में खाद्यान्न उपलब्ध कराने में उत्तरी राज्यों का महत्वपूर्ण योगदान है, उसी प्रकार औद्योगिक उत्पादन, विशेषकर इलेक्ट्रानिक और आईटी उत्पाद उपलब्ध कराने में दक्षिणी राज्यों के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता। इस प्रकार भारत एक परिवार की तरह है और सभी राज्य इसके सदस्य हैं। परिवार में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता, इसमें अमीर-गरीब का कोई विचार नहीं है, जरूरत इस बात की है कि सब मिलकर काम करें और अपने अभिन्न परिवार यानी भारत को समृद्ध बनाएं।

जनसांख्यिकीय प्रदर्शन : 15वें वित्त आयोग की कार्यवाही के दौरान दक्षिण के राज्यों ने केंद्र सरकार के समक्ष संदर्भ की शर्तों के बारे में अपनी शिकायत व्यक्त की, जिसके अनुसार वित्त आयोग को पिछले आयोग द्वारा उपयोग की जाने वाली जनसंख्या को 1971 के बजाय 2011 की जनगणना के अनुसार उपयोग करने का निर्देश दिया गया था। उनका आरोप था कि यह दक्षिणी राज्यों के विरुद्ध जाएगा, क्योंकि उन्होंने अपनी जनसंख्या को कई अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर तरीके से नियंत्रित किया है। इन चिंताओं को दूर करने के लिए, 15वें वित्त आयोग ने जनसांख्यिकीय प्रदर्शन यानी जनसंख्या नियंत्रण को भी महत्व दिया। हमें ध्यान देना चाहिए कि दक्षिणी राज्यों में धीमी जनसंख्या वृद्धि वहां की शिक्षा और औद्योगिक विकास के कारण थी। लेकिन अधिकांश दक्षिणी राज्य जनसांख्यिकीय लाभांश को जनसंख्या नियंत्रण द्वारा पार कर चुके हैं और प्रवासी श्रमिकों पर उनकी निर्भरता लगातार बढ़ रही है, जो आपसी सहयोग के महत्व को दर्शाता है।

इसके अलावा, केंद्रीय करों के कुल हस्तांतरण में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल की हिस्सेदारी पिछले वित्त आयोग की तुलना में 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों में कमोबेश वही रही। हालांकि कर्नाटक की हिस्सेदारी 4.71 प्रतिशत से घटकर 3.64 प्रतिशत हो गई। केरल का हिस्सा इस अवधि में में 2.5 प्रतिशत से घटकर 1.92 प्रतिशत हो गया। लेकिन केंद्रीय राजस्व में हिस्सेदारी के अलावा, इन राज्यों को महत्वपूर्ण राजस्व घाटा अनुदान भी दिया गया। आंध्र प्रदेश के मामले में यह 2021-22 से 2023-24 के लिए 30,497 करोड़ रुपये और कर्नाटक के लिए 2021-22 के लिए 1,631 करोड़ रुपये बैठता है। केरल के लिए यह 2021-22 से 2023-24 के लिए 37,814 करोड़ रुपये और तमिलनाडु के लिए 2021-22 के लिए 2,204 करोड़ रुपये था।

इसलिए आंकड़े किसी भी तरह से वित्त आयोग के कथित पूर्वाग्रह को साबित नहीं करते। हमें यह समझना चाहिए कि राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय सद्भाव के मुद्दों पर हमें अलगाववादी बयानों से बचना चाहिए, क्योंकि यह हमारे राष्ट्र की राष्ट्रीय एकता और जान कल्याण पर काफी हद तक प्रभाव डाल सकता है। अलगाववादी आवाजों पर अंकुश लगाने की जरूरत है और अलगाववादी एजेंडे में शामिल अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और मीडिया से भी सख्ती से निपटा जाना चाहिए।

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